गुरुवार, 3 नवंबर 2016

बेरोजगारी

बेरोजगारी परिभाषा - कार्य करने के योग्य व इच्छुक व्यक्तियों द्वारा प्रचलित मजदूरी पर काम माँगने के बावजूद उसे उसे उपलब्ध न हो तो उसे बेरोजगार कहा जाता है।

श्रम बल - जनसंख्या का वह भाग जो कार्य करने के योग्य व इच्छुक है, श्रम बल कहलाता है।
कार्य बल - श्रम बल का वह हिस्सा जो किसी न किसी उत्पादक कार्य में संलग्न है, कार्य बल कहलाता है।
बेरोजगारी के प्रकार -
  • संरचनात्मक बेरोजगारी - अर्थव्यवस्था के अल्पविकसित ढांचे के कारण जनसंख्या को रोजगार उपलब्ध नहीं हो पाता। यह अल्पविकसित व विकासशील देशों में पाई जाती है तथा दीर्घकालिक होती है। भारत में बेरोजगारी का प्रमुख प्रकार है।
  • चक्रीय बेरोजगारी - समग्र मांग में कमी के कारण पूर्ती प्रभावित होती है। परिणामस्वरूप उत्पादन में कमी आती है तथा उसमें संलग्न व्यक्ति बेरोजगार हो जाते हैं। यह विकसित देशों में पाई जाती है।
  • घर्षणात्मक बेरोजगारी - जब व्यक्ति किसी एक नौकरी को छोड़कर दूसरी जॉइन करता है तो वह कुछ समय के लिए बेरोजगार हो जाता है। यह अल्पकालिक होती है तथा विकसित देशों में पाई जाती है।
  • मौसमी बेरोजगारी - मौसम परिवर्तन के साथ कुछ कार्य अनुत्पादक हो जाते हैं तथा उनमें संलग्न व्यक्ति बेरोजगार हो जाते हैं। भारत में यह बेरोजगारी कृषि क्षेत्र में पाई जाती है।
  • अदृश्य/प्रच्छन्न/छिपी हुई बेरोजगारी - जब किसी कार्य में आवश्यकता से अधिक लोग संलग्न हो, उनमें से कुछ व्यक्तियों को हटाने पर भी उत्पादन अप्रभावित रहे। अर्थात् हटाए गए व्यक्तियों की सीमांत उत्पादकता (Marginal Productivity) जीरो हो। यह भी भारत के कृषि क्षेत्र में पाई जाती है।
  • खुली बेरोजगारी - जब व्यक्ति स्पष्ट तौर पर किसी भी उत्पादक कार्य में संलग्न न हो। यह शैक्षणिक व औद्योगिक क्षेत्र में पाई जाती है।
बेरोजगारी का मापन - भारत में बेरोजगारी का मापन NSSO (National Sample Survey Organization) द्वारा किया जाता है। NSSO की स्थापना 1950 में की गई व इसका मुख्यालय दिल्ली में है।
बेरोजगारी मापन की विधियां -
  • सामान्य स्थिति (U.S.) - इसके अंतर्गत वर्ष को दो भागों में बाँटा जाता है। - व्यस्त भाग तथा सुस्त भाग। यदि किसी व्यक्ति को व्यस्त भाग में भी कम उपलब्ध न हो तब उसे बेरोजगार माना जाता है।
  • प्रचलित साप्ताहिक स्थिति (C.W.S.) - किसी संदर्भित सप्ताह में यदि व्यक्ति को एक घंटे का भी काम उपलब्ध न हो तो उसे बेरोजगार माना जाता है।
  • प्रचलित दैनिक स्थिति (C.D.S.) - यदि किसी व्यक्ति को एक दिन में चार घंटे का कार्य उपलब्ध हो तो इसे आधे दिन का रोजगार तथा इससे अधिक होने पर पूरे दिन का रोजगार माना जाता है। यह सबसे उपयुक्त विधि है।
भारत में बेरोजगारी की दर 4.9% है। भारत में बेरोजगारी % सर्वाधिक केरल में (अधिक साक्षरता के कारण) है। सबसे कम बेरोजगार सिक्किम में (कम जनसंख्या के कारण) है। घर्षणात्मक व छिपी हुई बेरोजगारी प्रत्येक स्थिति में बनी रहती है। बेरोजगारी के लिए कोई कमिटी/आयोग नहीं बनाया गया।

अर्थव्यवस्था का वर्गीकरण

अर्थव्यवस्था का वर्गीकरण
अल्पविकसित अर्थव्यवस्था -
  • पिछड़ी हुई तकनीक
  • निम्न प्रतिव्यक्ति आय
  • अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान
  • अल्पविकसित आधारभूत संरचना
    • आधारभूत संरचना
      • आर्थिक - सड़क, परिवहन,बैंकिंग
      • सामाजिक - शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल
  • जनसंख्या की अधिक वृद्धि दर
  • प्रकृति पर अत्यधिक निर्भरता
  • गरीबी व बेरोजगारी का उच्च स्तर
  • मानव विकास सूचकांक (HDI) में निम्न स्तर
विकसित अर्थव्यवस्था -
  • उच्च तकनीक
  • उच्च प्रतिव्यक्ति आय
  • अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र का अधिक योगदान
  • विकसित आधारभूत संरचना
  • जनसंख्या की निम्न वृद्धि दर
  • प्रकृति से दूरी
  • गरीबी व बेरोजगारी का निम्न स्तर
  • मानव विकास सूचकांक में उच्च स्तर
भारतीय अर्थव्यवस्था में अल्पविकसित व विकसित दोनों के लक्षण पाए जाते है। अतः इसे विकासशील अर्थव्यवस्था कहा जाता है।
वर्तमान में जिन अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि दर अधिक है तथा जनसंख्या की वृद्धि दर भी उच्च है, उन्हें उभरती हुई अर्थव्यवस्था (Emerging Economy) कहा जाता है।

समाजवादी अर्थव्यवस्था -
  • उत्पादन साधनों पर राज्य या समाज का नियन्त्रण
  • प्रशासनिक कीमत तन्त्र
  • बाजार पर सरकार का नियन्त्रण
  • प्रतिस्पर्द्धा का अभाव
  • संसाधनो का अकुशल उपयोग
  • आर्थिक समानता
  • उत्पादन केवल आवश्यकता पूर्ति के लिए
  • सृजनशीलता (Creativity) व समन्वय का अभाव
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था -
  • उत्पादन साधनों पर निजी व्यक्तियों का स्वामित्व
  • बाजार शक्तियों द्वारा मूल्य निर्धारण
  • बाजार में सरकार का अहस्तक्षेप
  • अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धा
  • संसाधनो का कुशलतम उपयोग/दोहन
  • आर्थिक असमानता
  • उत्पादन केवल लाभ के लिए
भारत की प्रथम औद्योगिक नीति (1948) में मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया। इसके अंतर्गत समाजवादी व पूंजीवादी दोनों के लक्षण विद्यमान होते हैं। दूसरे शब्दों में सार्वजानिक क्षेत्र के साथ-साथ निजी क्षेत्र भी उपस्थित होता है।
1956 में भारत में समाजवाद को पूंजीवाद पर वरीयता दी गई तथा 1991 में पूंजीवाद को समाजवाद पर वरीयता दी गई।